आज तुम्हे एक बात बता रहा हूँ। इससे पहले भी कई बार ये राज की बात मैं तुमसे कहना चाहता था , लेकिन कभी कह न पाया ।
तुम सबसे कहती फ़िरती हो कि तुम मुझे मुझसे ज़्यादा, मुझसे बेहतर जानती हो। मेरी पसंद -ना पसन्द, मेरी आदतें ,मेरी शिकायतें, मेरी शरारते , सभी से तुम बहुत अच्छे से परिचित हो ।
इतना ही नहीं , मेरे लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा है, मुझे क्या करना चाहिए , कहाँ जाना चाहिए, किसके साथ रहना चाहिए , इन सब बातों को तय करने का तुम्हारे पास पूरा हक है | जहाँ तुम्हें इन सब बातों का बड़ा गुरूर है वहीं मुझे तुम्हारे इस ग़ुरूर पर ग़ुरूर है ।
अब जब यादों-कल्पनाओं में तुम्हारा वजूद कहीं मिलता नहीं , तो न तुम्हारा ग़ुरूर कहीं सुनता हूँ , और न ही कहीं देख पाता हूँ ।
तुम्हे और तुम्हारी ग़ुरूर की बाते , जब मैं अपने 10 बाई 10 के हवादार कमरे की शीलन लगी दीवार पे टकटकी लगाए ,सोचता हूँ ,तो दीवार न जाने क्यों मुस्करा उठती है। ये वही दीवार है, जिसपे मेरी कल्पनाओं ने तुम्हारी यादों की तस्वीरें लटका रखी होती हैं।
दीवार की मुस्कान मुझे बहुत कुछ बता देती है , कई उलझी पहेलियाँ सुलझा देती हैं, एक ही पल में कई सवालों के जवाब दे देती है।
हँसकर ये मुझसे कहती है कि मुझे , मुझसे बेहतर, मुझसे ज्यादा जानने वाली सिर्फ तुम नहीं ! बल्कि कोई और भी है , जो तुमसे भी ज्यादा मुझे जानता है। और वो कोई नहीं , मेरा 10 बाइ 10 का हवादार कमरा है , हर वो चीज जो यहाँ मौजूद है , मेरे वजूद को मुझसे बेहतर जानती है ।
इस बात पर जब गौर करता हूँ तो कई सच्ची बाते सामने आती हैं | जिनका तुम्हे भी पता होना, मैं जरुरी समझता हूँ | तुम्हे जहाँ सिर्फ मेरी आदतों का पता है ,वहीमेरे किराए के कमरे को पता है कि मेरी आदतों की बनावट क्या है। तुम्हे मेरे सोने का समय पता है ,लेकिन मेरे कमरे की छत पर लटके हुए पंखे को पता है कि मैं उसे कब घूरना बंद करता हूँ और मुझे नींद कब आती है । ये मेरा कमरा ही जानता है कि क्यों रातों को तुम्हारी यादे मुझे देर से सुलाती हैं और क्यों सुबह को तुम्हारी दी हुई घड़ी ,जल्दी जगाती है|
तुमने मुझे हमेशा दोस्तों के साथ, दोस्तों के बीच हंसते-खेलते हुए पसंद किया है , लेकिन ये सिर्फ मेरे कमरे की चौखट ही जानती है कि उदास शामो में मैं अकेले-अकेले कितना तन्हा और कितना मायूस बैठा रहता हूँ |
तुम्हे बस इतना ही पता है कि मुझे किताबे पसंद है , लेकिन बिस्तर की सिलवटें खायी हुई चादर पर बिखरी किताबो को ही पता है कि , मुझे उसके पन्ने पलटने का स्वाद क्यों इतना अच्छा लगता है, | वे जानती हैं , जब भी कोई किताब मैंने खोलता हूँ , उसमे तुम्हारा नाम खोजता हूँ , मेरी और तुम्हारी वो कहानी ढूंढता रहता हूँ , जो कभी हुई नहीं और जो कभी होंगी भी नहीं |
मेरे सपनो के बारे में, ख़्वाबो के बारे में तुम्हे क्या कुछ पता होगा | ये मेरा तकिया ही है जिसे मेरे सारे सपने याद हैं , और तकिये के नीचे रखी डायरी को ही पता है कि मैंने अपने लिए , तुम्हारे लिए कितने ख्वाब सजायें हैं |
ये तुम जानती हो कि मैं कम बोलना पसंद करता हूँ , लेकिन ये मेरे कमरे के आईने को ही पता है कि मैं कितना बातूनी हूँ | उसने मुझे जब भी देखा है ,खुदसे- तुमसे और तुम्हारी बातें करता देखा है |
तुम्हें लगता है कि मुझे नीला -आसमानी रंग पसन्द है , लेकिन ये कमरे की खुली खिड़कियों ही जानती हैं कि मुझे नीला-आसमानी रंग नहीं , मुझे नीला आसमान पसन्द है। यही खिड़कियाँ जानती हैं कि नीले आसमान में,उड़ते परिंदों की नादानियाँ और तैरते बादलो की शैतानियाँ मुझे कितनी पसंद हैं|
कमरे की मेरी इन मस्त-मनमौजी खिड़कियों को मेरे बारे में कुछ ज्यादा ही पता है | और होगा भी क्यों नहीं , जब भी कमरे पर होता हूँ तो ज्यादातर खिड़की के पास ही तो होता हूँ | कभी हाथ में खौलती हुई चाय लिए खिड़की से, गीली सडको पर गिरती बारिश की बूंदे गिनता हूँ , तो कभी सर, खिड़की पर टिकाये बचपन को खेलते हुए , दौड़ते हुए देखकर, बचपन को याद करता हूँ | कभी खिड़की से आई ही फ़िजाओ को गले से लगाकर तुम्हारा संदेशा पाता हूँ , तो कभी खिड़की से आती , सुबह की सूरज की लाल रौशनी में तुम्हे तुम्हारी सलामती की दुआएं देता हूँ |
ये तमाम चीजे हैं , जो मुझे तुमसे , मुझसे बेहतर जानती हैं | एक वो वक्त हुआ करता था , जब यहाँ रहना किसी कैद में रहने से कम नहीं लगता था और एक वक्त यह है , जो मुझे कहीं नहीं मिलता , वो सुकून मुझे इस 10 बाई 10 के कमरे की छत के नीचे रहकर मिलता है | पूरी दुनिया में मेरी कहाँ कुछ चल पाती है , एक मात्र यही जगह है , जो मुझे मेरी मनमानी करने देती है , एक बस यही तो जगह है , जहाँ मैं वो हर चीज कर पाता हूँ ,जो कभी सिर्फ सोचा करता था |
मुझे अपने इस कमरे पर बड़ा गुरुर है , मैंने जितने भी ख्व़ाब ,इस कमरे की छत की नीचे , इन शीलन लगी दीवारों पर सजाएँ हैं वे देर-अबेर ही सही लेकिन पूरे हुए हैं | मेरा यह गुरुर और बड़ जायेगा जब सिरहाने के सामने लगी दीवार पर लिखा मेरा ख्वाब पूरा होगा , जब तुम इस किराएदार को अपने दिल का कमरा किराए पर दोगी | तुम फिर से इस किरायेदार पर ,अपना गुरुर रखना , मैं दुबारा से तुम्हारे इस गुरुर पर गुरुर किया करूँगा |
यहाँ तक पूरा पढने के लिए धन्यवाद | ये थे एक साधारण किरायेदार के कुछ ख्याल , कुछ जज्बात , जो उसे दिल के कमरे किराए पर देने वाली मालकिन से कहनी चाहिये |
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बहुत सुन्दर ।
भवानी प्रसाद मिश्र कहते है,
” तेरा नभ में संचार, मेरा दश फुट का संसार ”
सराहनीय – दश फुट के संसार को बारीकी से अन्वेशण करने के लिए ।
धन्यवाद मित्र ।।
Simply outstanding❤️
Thank You Dear…
Achha likha hai Brother ….
Thank you Mukesh bhai ….