जब भी का नाम हमारे कानो पर पड़ता है , इसके प्रति हमारा नकारात्मक, बुरा नजरिया सामने आता है , दुनिया का सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु इस बात से हर व्यक्ति परिचित है ,लेकिन फिर भी वह इसे स्वीकार नही करना चाहता ……लोग एक-दूसरे को मृत्यु के नाम से डराते हैं ,धमकाते हैं , लोग जीने के लिए नहीं जीते हैं, बल्कि न मरने के लिये जीते आ रहे हैं।
मृत्यु कोई डरने-डराने का या फिर धमकाने का औजार नहीं है ,यह तो एक प्रेरणा है।मृत्यु जीवन पर जबरदस्त स्पष्टता प्रदान कर सकती है और अंततः, एक केंद्रित जीवन का नेतृत्व करने के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है।
यदि हम समझ ले कि जीवन सीमित है, तो यह हमें ,हम कौन है? और हमारे जीवन में कया महत्वपूर्ण है? जानने में जबरदस्त स्पस्टता देता है, ताकि हम अपनी ऊर्जा , शक्ति को एक सही दिशा में एकाग्र होकर लगा सके ।
मृत्यु सब कुछ परिप्रेक्ष्य में लाती है। परिवार, दोस्त, काम, जीवन ही, सभी मौत की सजा के समय प्राथमिकता के एक प्राकृतिक क्रम में आते हैं। आपकी जागरूकता, इसलिए आपकी ऊर्जा, केंद्रित तरीके से निर्देशित होती है जैसे पहले कभी नहीं हुई। एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाता। जीवन अपनी पूर्णता के लिए जिया जाता है।
मुझे याद है ,एक दिन मैं एक आध्यत्मिक गुरु का लाइव शो देख रहा था , वहाँ एक उद्यमी ने गुरु से पूछा,”गुरुदेव, आप मृत्यु के बारे में क्या सोचते हैं? मृत्यु क्या है?”
उस सवाल का जवाब देते हुए गुरुदेव ने कहा ,
” ईमानदारी से कहूँ तो मैं मृत्यु के बारे बहुत कम सोचता हो , बल्कि मैं कभी सोचता ही नहीं हूँ, इसके बजाय मैं सोचा करता हूँ कि इस धरती पर हमारा जीवन निश्चित समय तक के लिए है , और क्योंकि यह निश्चित है ,इसलिए मैं सिर्फ जीवन कैसे जिया जाय, पर प्राथमिकता देता हूँ और इन प्राथमिकताओं पर अपना पूरा ध्यान देता हूँ।”
“मैं देखता हूँ कि मेरे जीवन में मेरे जीवन के लिए क्या और कौन महत्वपूर्ण हैं, और यह जान लेने के बाद मैं अपनी ऊर्जा जिसकी भी एक निश्चित मात्रा होती है, उसे एकाग्र मन से इन लोगों और चीजों पर लगाता हूँ ,क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं इस दुनिया में हमेशा नहीं रहूँगा।”
“एक और चीज कि मृत्यु हमें अपने जीने के सलीके के बारे में सोचने को प्रेरित करती है कि हम कैसा जीवन जीना चाहते हैं?”
“जीवन के आख़िरी दिनों में यदि आप पीछे मुड़कर अपने इस जीवन को देखेंगे तो आप क्या कहेंगे?”
आध्यात्मिक गुरु ने अपनी बात को आगे बड़ाते हुए कहा ,” जब मेरे गुरु जीवन के आख़िरी दिनों में थे और जानते थे कि उनके पास अब कुछ ही समय है ,तब उन्होंने अपने शिष्यों को एक साथ बुलाया और कहा,” आह,मेरा क्या शानदार जीवन रहा।”
शिष्यों को एक मरते हुए व्यक्ति से गहन शब्द सुनने को मिले, कि मृत्यु की शया पर अपने पूरे जीवन को याद करते वक्त, देखते वक्त, जब आप पाते हैं कि आपने एक शानदार जीवन जिया है, तो यह किसी उपहार से कम नहीं रहता ।
मरते वक्त अपने बीते हुए पूरे जीवन के प्रति सभी को किसी न किसी बात का अफसोस रहता ही है, शायद ही कोई होगा जो कहता होगा कि उसने एक सम्पूर्ण, संतुष्ट, जीवन जिया है। यह इसलिये क्योंकि ये लोग अपने जीवन के उद्देश्य लिए नहीं जीते हैं ,ये जीते है तो सिर्फ न मरने के लिए। वो कभी अपने जीवन जीने के सही कारण, को स्पष्ट ही नहीं कर पाते थे, वे नहीं जानते कि उनके जीवन में उनके जीवन के लिये क्या महत्वपूर्ण है, किन चीजों को प्राथमिकता देनी है।
धर्म औऱ जीवन के दर्शन की मानें तो हमें यह महसूस होना चाहिए कि हमारे पास जीने के लिए सिर्फ और सिर्फ एक जीवन है वह भी एक सीमित समय के लिए। हम पुनर्जन्म की धारणा को भी यदि मान लेते हैं, लेकिन फिर भी हमारा यह जीवन ,वह हमें इस रूप में एक बार के लिये ,एक सीमित समय तक ही रहेगा।
इसलिए हमें इस जीवन को शानदार बनाने के हर सम्भव प्रयास करने चाहिए।
यह जानकर कि हमारा किरदार , एक निश्चित समय तक के लिए ही इस धरती पर है,और क्योंकि इस नाटक की एक सीमित अवधि है , इसलिए हमें अपनी सारी ऊर्जा, ध्यान ,अपने किरदार को निखारते हुए निभाने की ,उत्तम जीवन जीने की प्राथमिकताओं पर लगानी चाहिए।
ताकि पर्दा जब गिरे, हमें किसी भी चीज का अफ़सोस न हो , लोग कहें न कहे लेकिन हम खुद से कह सके ,
“वाह ! मैंने क्या शानदार किरदार निभाया है।”
“वाह! मैं क्या सुंदर जीवन जिया।”