विक्की की टाइम मशीन:- बैलों के गले की मटरमाला

दिसम्बर-जनवरी की कंपा देनी वाली सर्दी फरवरी के आखिरी दिनों के आते-आते अब कम होने लगी| जो मार्च के आते-आते, गर्मी में बदलने लग गई | मौसम बदल रहा है ,इसलिए माहौल का बदलना भी जायज है | शहरों में एक बार फिर सुबह को कोहरे की धुंध की जगह , प्रदूषण का धुआं दिखना शुरू हो गया | वहीँ पहाड़ के गाँव में सूरज ने सूर्योदय की टाइमिंग भी बदल दी | जिसका पता चिड़ियों की जल्दी होने वाली चहचहाट से लग सकता है | खेतों की एक सार में जहाँ रबी की फसलों में पीले फूल आने लग गये हैं ,वहीँ दूसरी सार जो पिछले तीन महीनो से क्रिकेट टूर्नामेंट में बिजी थी , उसमें हल लगाने की तैयारी पंचमी से शुरू हो गयी | पिछले कुछ महीनों में खेतो में कुछ ख़ास काम था नहीं ,इसलिए रामलीला, पांडव नृत्य के आयोजनों में बिजी होने के बाद पहाड़ का युवा क्रिकेट टूर्नामेंट में बिजी हो गया था |

कुछ दिन पहले सुबह को सिर्फ चिड़ियों का सुरीला शोर रहता था | संतरे की टहनियों से लेकर बिजली के तारों पर उन्ही की चहल-पहल रहती थी | लेकिन आजकल चिड़ियों की चहल-पहल से पहले ही गाँव के रास्तों पर बैलों के गले की घंडूली(घंटी) और बैलों को हांकने की तरह-तरह आवाजे गूंजने लगी हैं |

ट्रैफिक! सिर्फ शहरो की सडको पर नहीं लगता , गाँव के संकरे रास्तो पर भी लगता है| शहरों की सडको पर हर –पल सांस लेता ट्रैफिक जहाँ शहरी लोगों का दम घोंटता रहता है, वहीँ इन दिनों सुबह होने के ठीक पहले के अँधेरे में गाँव के बीचो-बीच से गुजरते रास्ते में आते-जाते बैलों की जोड़ियों की वजह से ट्रैफिक लगता है, सींगो में टकराव होने की संभावनाए बनी रहती हैं| हाँ! सिर्फ संभावनाए ! क्योकि इससे पहले बैल एक-दुसरे को देखकर घुर्राने लगते, नथुने भरने लगते, उन्हें पीछे से अलग-अलग आवाजो द्वारा नियंत्रण में लिया जाता| बैलों को जरा सी आवाज देने से ही यह ट्रैफिक क्लीअर हो जाता , हाँ! कभी-कबार जब बैल ज्यादा ढीठ हों तो ऐसे में उन्हें नियंत्रण में रखने के लिए लम्बी संटी का उपयोग करना ही पड़ता है |

सूरज उगने से पहले चिड़ियों की चहल-पहल शुरू हो ,इससे पहले ही गाँव के खेतों में बैलों को जोतने और उन्हें हांकने की हल-चल शुरू हो जाती है|

इधर पूरे गाँव ने हल लगाना शुरू कर दिया और करीब आधे गाँव वालों ने अपने खेतो में हल पूरा लगा भी दिया , लेकिन विक्की के खेत अभी भी वैसे के वैसे ही हैं जैसे वो 3 महीने पहले थे |

आखिरी बार की तरह , विक्की के हल्या जसपाल काका ने आने में देर कर दी | जसपाल काका के पास आधे गाँव के खेतो में हल लगाने का ठेका है | एक बार गाँव वालो का हल लगाने के बाद आखिरी में  वह विक्की के खेतो में हल लगाने आता है |

आज वह अपने मरियल ढांगो को लेकर विक्की के घर में आया है | जसपाल काका को चाय पीते हुए देख , विक्की को अपने ताऊजी की याद आने लगी । खेत में हल लगाने से पहले उसका मन उसे , उसकी यादों की सवारी के साथ समय यात्रा पे ले गया ।

अपनी समय यात्रा में अपने बैलों के साथ-साथ खुद को बड़ा होता हुआ देखने लगता है | कुछ दृश्य आँखों के सामने आते हैं ,जैसे अपने ताऊ के साथ बचपन में अपने बैलों को हल लगाना सिखाना  और खुद भी सीखना | बैलों को कैसे जोता जाता है , हल को कैसे पकड़ा जाता है , उन्हें समय-समय पर कैसे हाँका जाता है ये सब करते हुए  खुद को देखने लगता है |

एक के बाद एक घटनाओं की फिल्म चलने लगती है | जब उनके बैल छोटे थे , उन्हें हल चलाना सिखाना के लिए ताऊ जी विक्की को हाथ में हरी घास पकड़ कर बैलों के आगे-आगे चलने के लिए कहते | एक दिन ऐसा ही करते समय उनके एक बैल ने उसपर धक्का दे दिया था , जिससे वह धड़ाम से नीचे वाले खेत में गिर गया था |

सिर पर घने बालों के बीच चोट का खोट आज भी उसे सीधे इस दिन में ले जाता है | जब बैलों की  इस हरकत की वजह से दोनों बैलों ने ताऊ जी की  बहुत मार खाई थी | ताऊ जी का बैलों से बहुत लगाव था लेकिन उससे ज्यादा उनके लिए विक्की , जिसे वे अपने बेटे से ज्यादा प्यार करते थे |

उस दिन अगर विक्की अपने ताऊ जी को रोकता नहीं तो शायद उनके बैल वहीँ पर दम तोड़ देते | भले उसके ताऊ जी उसे बेहद प्यार करते थे,लेकिन इससे कई ज्यादा प्यार विक्की अपने बैलों से करता था |

स्कूल जाने से पहले एक बार ताऊ जी के साथ , हल लगाने खेत चले जाता | आगे-आगे हल का जुआ कंधे में रखकर , एक हाथ में बैल के गले पर बंधी डोरी को आगे से खींचता हुआ ,उन्हें रास्ता दिखाता | खेत में पहुँचते ही , ताऊ जी जब बैलों को जोत रहे होते तो ताऊ जी के हाथों को बड़े गौर से देखता | यह नजारा देखकर , ताऊ जी मुस्कुराते | जैसे-जैसे ताऊ जी हल लगाते ,बैल स्यूं से स्यूं मिलाते और विक्की उनके पीछे-पीछे कदम से कदम मिलाता |  बीच-बीच में जब ताऊ जी तम्बाकू पीने के लिए रुकते तो बैल खड़े-खड़े आराम कर रहे होते | ऐसे में विक्की चाहता कि वह इस समय हल पकडे लेकिन ताऊ जी मना कर देते | कभी-कभी इस बात पे विक्की डांट भी खा लेता था |

डांट खाने के बाद विक्की रोने का मुंह बना लेता तो ताऊ जी उसके हाथो में हल दे देते | विक्की हल को संभाल नहीं सकता था , यह बात खुद उसको भी पता थी लेकिन वह तब भी हल चलाने कि चाह रखता था | और जैसे-तैसे करके  एक स्यूं लगा ही लेता |

जब वह हल पकड़ता , बैल अपनी दिशा से भटक जाते और  बैल तेज दौड़ना शुरू कर देते | वह जब पूरी तरह से बैलों पर से अपना नियंत्रण खो देता तो , ताऊ जी की ओर देखता , मासूम सा चेहरा बनाता | ताऊ जी यह देखकर हँसते और और बीड़ी का आखिरी कश जल्दबाजी में लेते और दौड़कर हल पकड़ लेते |

इतने में विक्की का स्कूल जाने का टाइम भी हो जाता , ताऊ जी उसके के न चाहते हुए भी उसे घर भेज देते , ताकि वह समय पर स्कूल जा सके | विक्की मन मार के स्कूल तो चले जाता लेकिन अपना मन यही बैलों के साथ छोड़ देता था | हाँ! जब स्कूल की छुट्टी रहती तो इस दिन विक्की को अपने बैलों से दूर रखना किसी के बस में नहीं रहता था | बीच-बीच में हल तो वह जैसे-तैसे करके पकड ही लेता था | हल लगाने के बाद ताऊ जी के साथ छाँव पर घर से आया हुआ खाना खाता | खुद  खाना खाने से पहले , बैलों को अपने हाथो से गुड चना खिलाता, सात तरह के मोटे अनाज से बना पींडा(बैलों की ख़ुराक) खिलाता |   

बचपन में गाँव के मेले में उसके सारे दोस्तों ने अपने लिए खिलौने वगैरा बहुत सी चीज़े खरीदी थी | वह भी अपने दोस्तों की तरह अपने लिए खिलौने खरीदना चाहता था , इसके लिए घर से कुछ रुपये उसे भी मिले थे | मेले में पहुँचते ही उसने अपने लिए खिलौनों की जगह, अपने बैलों के लिए गले की सुन्दर सी मटरमाला खरीदी |

घर पहुँचते ही अपने बैलों के गले में वो माला बाँध दी | इसके बाद भी अक्सर विक्की अपने बैलों के लिए कभी खांकरे , कभी कांसे की घंडूली लाता रहता | आज जिस तरह गाँव के ड्राईवर अपनी गाड़ियों को सजाते है, उसी तरह कभी विक्की अपने बैलों को सजा के रखता था | माँ उसे स्कूल के लिए तैयार करती थी | अपने बालों पर लगा चिपचिपा चमकता हुआ सरसों का तेल , विक्की अपने बैलों के सींगों पर लगाकर स्कूल जाता था |

सुबह की  रोशनी में सींगो पर लगाया  गया तेल, दिन की चिलचिलाती हुई धूप तक सींगो को चमका के रखता | बैलों के गले में बंधी घंडूली और खांकरों की आवाज से बैलों की हल लगाने की गति का अंदाजा लगाया जा सकता |  ताऊ जी जब हल चलाते तो उनकी संटी का पत्ता वैसा का वैसा ही रहता था , उन्हें बैलों पर छड़ी चलाने की नौबत ही नहीं आती थी | अपने मधुर स्वर में बैलों को कॉशन-कमांड देते थे |

दोनों बैल दिखने में खूब हष्ट-पुष्ट थे बड़े सुन्दर दिखते एकदम कैलंडर में छपे बैलों की तरह | दोनों बैलों की आपस में गजब की केमिश्ट्री थी | दोनों ही हिंसक पशुओं के लिए हमलावर हो जाते |

हल लगाने के बाद जब खेतो में उन्हें चरने के लिए छोड़ा जाता | तो आस-पास के दुसरे बैलों को देखकर दोनों ही अपने नथुने फुलाते , डुकर -डुकरकर बैलों को चुनौती देते थे | अपने अगले खुरो से जमीन से धूल उड़ाकर लड़ने के लिए सामने वाले बैलों को उकसाते |

 विक्की अपनी समय यात्रा में ही था कि तब तक जसपाल काका ने चाय खत्म कर दी और बीडी पीने लग गये | यह देखकर विक्की की माँ काका  को खींझने लगी कि पहले ही वह देर से आ रहे हैं और अब और देर कर रहा है | माँ ने दोनों को जल्दी  चलने को कहा तो , विक्की 20 सालो की समय यात्रा 2 मिनट में पूरी करके वापस आ गया |

विक्की समय यात्रा करके वापस तो आ गया , लेकिन अपने बैलों और ताऊ जी यादों से बाहर नहीं आ पाया । सोच रहा था कि पिछले साल तक की बात होती तो उसने  अब तक अपनी छुट्टी कर  दी थी, लेकिन पिछले साल उनके एक बैल की मृत्यु हो गयी थी | ऐसे में दुसरे बैल को बेचना पड़ा |

खेत मे जाने से पहले विक्की एक बार अपने बैलों की मटरमाला देखने लगा । जो बचपन में अपने बैलों के लिए लाया था | विक्की अक्सर इस मटरमाला को देखकर यूँ ही समय यात्रा करता रहता है | यात्रा जिसमे उसके साथ उसकी पसंदीदा यादें सफर करती हैं | हाँ! ये बात अलग है कि आज यह पहली बार हुआ होगा जब विक्की ने अपनी टाइम मशीन को देखे बिना ही समय-यात्रा की होगी |

विक्की आज भी बैलों के आगे-आगे चल रहा था , आज पूरा हल ले जा रहा था | उन खेतो में हल लगाने जिसका नाज , इंसानों के लिए कम जानवरों के लिए ज्यादा काम आता है | आज की आधुनिक प्रोद्योगिकी की दुनिया में ये पहाड़ी खेत ऐसी जगह है , जहाँ मेहनत इंसानों की होती है लेकिन मेहनताना जानवर ले जाते हैं| उकसे , नवजात बीजों को मिटटी में ही अपाहिज कर देते हैं , जैसे-तैसे इन अपाहिज बीजों की नींव पर फसल तैयार हो भी गयी , तो सूअर इसमें मिक्की माउस की तरह कूदकर अपना खेल दिखाने लगता है , शहरो से लाये गये बन्दर , यहाँ ग्वोनियों (लंगूरों ) के साथ मिलकर अपने करतब दिखाते हैं | इसके बाद भी चूहों का लुका छुपी का खेल भी तो इन्ही खेतो में देखने को मिलता है |

एक समय था  जब हल लगाने और बुआई के कुछ महीनो बाद सीढ़ीदार खेतो मे फसल लहलहाकर पकने का इशारा देती | खेतो में अच्छा अनाज होता था | सस्ते गल्ले की दूकान से राशन लेने की जरुरत न के बराबर होती थी | उल्टा जो राशन की दूकान से राशन लेने जाता ,उसे गाँव वाले गाली दिया करते थे |

अब वक्त दूसरा है , इसलिए माहौल पूरा का पूरा बदला हुआ मिलता है | पहले राशन की दुकानों का राशन बैलों और अन्य मवेशियों को दिया जाता था | अब राशन की दुकानों पर ही गुजारा करना होता है, खेतो में अब अनाज नहीं सिर्फ भूषा ही हो पाता है | जो बैलों और मवेशियों को दिया जाता है |

आज के जमाने में पहाड़ो में खेती करना , खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसा है |

उन दिनों खेत और मवेशियों की संख्या , घर की सम्पति(Assets) के तौर पर देखी जाती , और अब ये दोनों बोझ (liabilities) लगते हैं |

70-80 परिवार वाले गाँवों में 7-8 जोड़ियाँ ही बैल की होंगी | इन बैलों की हालत देखकर आज के जमाने के पहाड़ की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है|  दोनों की हालत मरियल हो रखी है, दोनों ही ढांगे बनते जा रहे हैं | जिन्हें बार-बार संटी से मार कर आगे धकेला जा रहा है |

………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..जारी

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