सुमन का गुलाबी हेयरबैंड

वक्त! पूरे दिन भर कितना ही तेज क्यों न दौड़ ले , शाम होते –होते वह भी थकने लगता है और धीमा हो जाता है | दिनभर की थकावट चेहरे पर लिए राशि शाम को घर पर अकेले बैठी हुई थी | शाम के धीमे वक्त में  शहर अभी-भी दौड़ लगा रहा था | सडको के दोनों ओर की दुकानों पर भीड़, मोल-भाव करने में व्यस्त थी | लम्बी-लम्बी परछाईयाँ लिए कुछ लोग घूमने निकले थे | पूरे दिन सडको पर धुल उडाती हुई गाड़ियाँ अभी कम दिख रही थी | हवा में झूमती-उडती धूल , अब थक कर सडको पर , दुकानों के शीशों पर, मोटरों के बोनट पर बैठने की कोशिश करती कि इतने में तेज आती गाडी का झोंका फिर से उसे हवा में बिखरने के लिए मजबूर कर रहा था |

दिनभर अपनी धूप से पिघलाने वाला सूरज , चुपके से पहाड़ी के पीछे छिप रहा था | व्यस्त शहर के लोगो से नजरे बचाता सूरज , राशि की नजरो से नहीं बच पाया | राशि डूबते हुए सूरज पर टकटकी लगाए, शांत, चुपचाप होकर सिर्फ अपने अन्दर के सन्नाटे के शोर को सुन रही थी | कुछ आवाजे थी जो कानो में गूंज रही थी | वह इन आवाजो से अपने कानो को नहीं पकाना चाहती थी | इसलिए हमेशा की तरह एक कागज पर  इन आवाजो को आकार देने में व्यस्त हो गयी |

“ काश! मैं एक ‘लड़का’ होती
सिर्फ मुस्कुराकर नहीं !
अपनी ख़ुशी , हँसी के ठहाको से जाहिर करती  …
मुझे रोकने-टोकने वाला कोई न होता
मुझे खुश दिखने में शर्म न लगती
काश! मैं एक ‘लड़का’ होती
अकेले बहुत दूर तक ,बहुत देर तक
दौड़ लगाती
लम्बी-लम्बी छलांगे मारती
गिरती-संभलती और चलती रहती
मुझे दूर तक जाने और देर से घर आने पर कोई डांट न पडती
काश! मैं एक ‘लडका’ होती
मेरा बचपन भी आँगन से लेकर
मैदानों में खेलता,
लड़ता-झगड़ता , हँसता-रोता,
किसी का मुंह तोड़ता, किसी से हाथ तुड़वाता 
यहाँ-वहाँ जहाँ मन करता , वहां भटकता
मेरा बचपन घर के आंगन तक ही सीमित न रहता
बचपन की यादो में सिर्फ चूल्हे पर रखी जली रोटी और सब्जी ही न होती |
काश! मैं ‘लड़का’…..

-राशि

…और भी कई आवाजे थी जो गूँज रही थी , जिन्हें अभी आकार देना बाकी था | वैसे भी, अभी तो बस नींव ही पड़ी थी , आवाजो की इमारत बननी अभी बाकी थी | यह काम रुका जब पापा की एक आवाज उसके कानो में पड़ी , जिसके डर से ये  आवाज़े फिर से मन के किसी कोने में दुबक कर रह गई |

वह उठ खड़ी हुई | पापा को चाय बनाने के लिए किचन में चली गयी | आज पापा फिर से चेहरे पर मुस्कुराहट लिए आये थे , फिर से हाथ में एक लिफाफा लिए आये थे | जिसे माँ के हाथो में पकड़ाकर उन्होंने माँ को बताया कि इस शनिवार को लड़के वाले राशि को देखने आ रहे हैं | राशि ने सब सुन लिया था | सुन लिया था कि उसे लड़के वाले देखने आ रहे हैं |

वह जानती थी वह चाहे कितना भी कॉलेज-पढाई-नौकरी की वजहें बता दे, उसकी शादी एक दिन होकर रहेगी |  वह सिर्फ शादी की तारीख टाल सकती थी , शादी नहीं |

राशि से घर से वो सब मिला था जो एक लडकी को मिलता है | पापा से बेहद लाड मिला था तो माँ से बात-बात पर डांट-फटकार भी मिली थी ,पापा से स्कूल पास करने के बाद कॉलेज जाने की इजाजत, तो माँ से “तू लड़की है, तुझे सलीके से ,संभल कर रहना चाहिए” वाली सलाह भी मिलती रहती थी | घर की बड़ी बेटी होने के आलावा वह घर की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, इस बात का एहसास भी उसे समय-समय पर कराया जाता था |    

घरवालो ने बचपन से राशि को जिस विश्वास से बड़ा किया था ,उसे इस विश्वास पर खरा उतरना था | इसके लिए उसे  चुपचाप पापा  के  बताये गये लडको में से किसी एक को पसंद करके शादी करनी थी |

“काश मैं ‘एक लड़का’ होती

मुझे देखने नहीं, लोग मिलने के लिए आते

मैं कोई चीज न होती जिसे देखा जाता , घूरा जाता

घूरती नजरो से

अपने आप को जहाँ-तहां दुप्पटे से न बचाती फिरती

कंधो पर दुप्पटा संभाले , नजरे झुकाए

मैं दुनिया-संस्कारों का बोझ न उठाती-फिरती

बात करती, सवाल करती , सिर्फ जवाब ही न देती

काश मैं ‘एक लडका’ होती…

…वक्त बहुत तेजी से गुजरा | कुछ दिनों बाद लड़के वाले राशि को मिलने आये | हमेशा की तरह लड़का उसे पसंद आया या नहीं, इस बात को कम ही प्राथमिकता दी गयी | लड़के वालो को राशि पसंद आनी जरुरी थी | अपनी पसंद का अंदाजा लड़के वालो ने अपने सवालों पर राशि के जवाब देने के लिहाज से लगा दिया था |

नतीजतन, राशि की अगले ही हफ्ते सगाई हो गयी और देखते-देखते अगले 3 महीनो में  शादी |

ये सब इतनी जल्दी-जल्दी में हुआ कि राशि को अपनी मर्जी जानने का मौक़ा भी नहीं मिला | उसके घरवालो को लड़का और लड़के का परिवार पसंद था और राशि को भी वे बुरे नहीं लगे थे | वैसे भी उसे इन सब से कहाँ ज्यादा मतलब था, वो तो हमेशा दो जिन्दगियां जीती रहती थी , एक ये और दूसरी वो जो ‘काश!’ से शुरू होती |

…………………………..“काश ! मैं ‘एक लडका’ होती ‘

चंद पन्नो की उसकी ये कविता, उसकी जिन्दगी की सारी कहानी को बयां करती थी | जब भी कुछ होता, राशि बाकी लड़कियों को छोड़कर अपने आस-पड़ोस के लडको से अपनी तुलना करती | गली में खेलते , बाजार में चौबीसों घंटे भटकते ,खुशमिजाज लडको को देखती, गलियों में ,मैदानों में लड़को की बेपरवाही देखती रहती | उनके बारे में सुनती तो उसके खयालो में ‘काश’ से शुरू होने वाली जिन्दगी की फिल्म की रील चलने लगती |

वह अपने घरवालो से बहुत प्यार करती थी | और प्यार किया नहीं जाता , प्यार दिया जाता है | शायद हर लडकी की तरह वह भी अपने घरवालो को वह सब कुछ देना चाहती थी , जिसकी उससे उम्मीद की जाती है , जिसका उसपर विश्वास किया जाता है |

उम्मीदे तोड़ी जा सकती हैं , वादे-कसमें तोड़े जा सकते हैं लेकिन किसी पर किया हुआ विश्वास नहीं तोड़ा जा सकता | राशि के घर वालो ने जिस प्यार और विश्वास के साथ  उसे बड़ा किया था, वह उस विश्वास को बिलकुल भी तोड़ नहीं  सकती थी |

इस विश्वास पर खरा उतरने के लिए आखिरकार उसे लडकी से औरत बनना ही पड़ा …

राशि अपने घर की एकमात्र सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी और शादी के बाद दुसरे-पराये घर की जिम्मेदारियां संभालने वाली थी | आखिर  इन्ही जिम्मेदारियों के लिए तो उसे बड़ा किया गया था , बचपन से आजतक जब कोई काम करती , माँ यही तो कहती ,” बेटा ! यहाँ ऐसे हाल हैं तो ससुराल में कैसे निभा पायेगी, बेटा ! ठीक से सीख ले, नहीं तो अगले दिन तेरे ससुराल वाले सुनायेंगे”|

शादी के बाद राशि के पास कहने को तो दो घर थे , लेकिन एक घर के लिए वो पराई थी तो दुसरे घर के लिए बाहरवाली | अपनों ने पराये घर में तो बड़ी धूमधाम से भेज तो दिया था , लेकिन पराये घर वालों के लिए वह बाहरवाली ही थी | उन्होंने राशि को घर में जगह तो दे दी लेकिन अपने दिलो के कमरों पर सबने बड़ा सा ताला लटका रखा था |

घरवाले कभी राशि की मौजदगी में कोई गंभीर बात नहीं करते थे, राशि को सबके खाना खाने के बाद अकेले में खाना खाना पड़ता था | घरवाले बात तो करते थे लेकिन अपने मूड के हिसाब से | जब भी कोई बात होती तो उस बात को राशि के मायके की किसी बात से जोड़ देते, जिससे राशि को नीचा महसूस हो | अपने आप को बड़ा और अच्छा दिखाने का उनके पास एक ही तरीका था , दुसरे को बुरा और छोटा दिखाना |

राशि को यहीं रहकर अब अपनी पूरी जिन्दगी गुजारनी थी | आखिर उसे यही तो सिखा कर बड़ा किया था , जैसे भी हो , निभाना है | हर परिवार की हर दूसरी औरत यही तो कर रही है |

इस घर में राशि बाहरवाली ही कहलाएगी, जब तक उसको दिल में जगह नहीं मिलती |  वह इस घर में अपनी मर्जी से सिर्फ साँस ले रही थी |

राशि का अपने पति अमन के साथ एक आम पति-पत्नी जैसा ही रिश्ता था | अमन एक प्राइवेट कंपनी में सुपरवाईजर था | हाल-फिलहाल में ही उसका परमोशन हुआ था तो काम का  बहुत सारा प्रेशर रहता था | पूरा दिन वह ऑफिस में और घर पर भी ऑफिस का ही काम में बिज़ी रहता | काम के चक्कर में अक्सर शहर से बाहर जाना पड़ता था  | जिस घर-परिवार के लिए वह जो काम कर रहा था , उस काम ने उसे घर-परिवार वालो से बहुत दूर कर दिया था |

अमन , जब राशि से पहली बार मिला था तो उसे पहली ही नजर में  राशि पसंद आ गयी थी | उस दिन राशि से कुछ बाते हुई थी तो अमन ने घर पर हाँ बोल दिया था | घर में कुछ लोग राशि से अमन की शादी कराने के खिलाफ थे | इसीलिए शादी के बाद घर के कुछ लोगों ने राशि के लिए अपने दिलो पर लगे ताले खोले ही नहीं थे |

उसके सामने घर वालो का राशि के प्रति व्यवहार बिलकुल अलग था, उसे दिखता कि घरवाले राशि को खुश रखते हैं , सभी उसका ख़याल रखते हैं | उसकी यह गलतफ़हमी , गलतफ़हमी बनी रही क्योंकि राशि ने कभी भी इस बारे अमन से बात नहीं की थी |

राशि, अपने ससुराल में अपनी लड़ाई खुद ही लड़ रही थी | घरवालो के दिलो में जगह पाने के लिए दिलो के ताले खुद खोलने में लगी थी |

कुछ महीनो बाद एक दिन राशि की तबियत खराब हुई तो डॉक्टर ने बताया कि राशि पेट से है , घर के सभी सदस्यों ने अपनी ख़ुशी जाहिर की | घरवालो के चेहरे पर उसकी वजह से आई मुस्कुराहट देखकर , राशि को ख़याल आया कि शायद अब घर वाले उसे अपने दिलों  में जगह दे देंगे | क्योंकि उसके पास ताले की चाबी जो आ गयी थी |

उसने जल्द ही ‘काश’ के सहारे शुरू होने वाले जिन्दगी भुला दी  थी , वह अब चाहती थी उसे ‘बेटा’ हो | उसकी अब एक ही चाह थी कि जो जिन्दगी वह जी न सकी , उसके पेट में पल रही ‘जिन्दगी’ वह जिन्दगी जी सके |

वह ईश्वर से यही प्रार्थना करती रहती कि उसे ‘बेटा’ हो , जिसे  वह बड़ा होते हुए देखकर अपनी काश वाली जिन्दगी जी सके और घरवाले उसे अपने दिलो में भी जगह दे सके |

अमन को जब यह खुशखबरी मिली, वह बहुत खुश हुआ | घरवालो के अलावा वह भी राशि का पूरा ख़याल रखता | अमन, अपने काम से छुट्टी लेते रहता और राशि का पूरा खयाल रखने लगा | एक पल में राशि की पूरी दुनिया ही बदल चुकी थी, ये जो इन दिनों जो  उसके साथ हो रहा था इसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था , वह बहुत खुश थी |

शादी के दो साल बाद शादी के दिन ‘सौभाग्यशाली रहने और खुश रहने ’ का आशीर्वाद अब अचानक से अपना असर दिखाने लगा | 

कुछ महीनो बाद , राशि ने अस्पताल में एक नई जिन्दगी को जन्म दे दिया | डॉक्टर ने जब घरवालो को बताया कि ‘बधाई हो! आपके घर में एक बेटी ने जन्म लिया है | घरवालो के कानो में ‘बधाई’ नहीं बल्कि ‘बेटी’ शब्द ही गूंजा था , जिसकी गूंज ने उनके चेहरों को मुरझा दिया था | दुनिया को दिखाने के लिए सभी ने ख़ुशी का नकाब तो पहन लिया, लेकिन जब वे राशि से मिले तो राशि ने नकाब के पीछे छिपे निराश चेहरों को पढ़ लिया |  

उसने बेटी को जन्म दिया है , यह सुनते ही उसके सारे आशीर्वाद, एक बार फिर किसी श्राप में बदल गए | बेटी की किलकारी उसके कान के पर्दों को फाड़ने लगी थी | राशि ने शादी के बाद के उन सारे आंशुओ को बहा दिया जो उसने दो साल से ‘बेटे को जन्म देने’ वाले बाँध से रोके हुए था |

घर में इस समय सिर्फ एक शक्श खुश था , अमन एक बेटी का बाप बनने पर अपने-आप को बहुत ख़ुश और भाग्यशाली मानने लगा था | उसकी जिन्दगी की यह सबसे बड़ी ख़ुशी थी, यह ख़ुशी राशि ने उसे दी थी |

कुछ ही दिनों में घर पर रहकर अमन को घर के सारे माहौल का पता चल गया | जो बर्ताव अभी तक राशि के साथ , अमन के पीठ पीछे होता था ,उसे अपने आँखों के सामने होता हुआ देख वह बहुत निराश हुआ, उसे अपने आप पर बहुत अफ़सोस हुआ | इधर राशि ने जब से बेटी को जन्म दिया था उसने अपनी बेटी का मुंह ठीक से नहीं देखा था |  बेटे की चाह ने उसे भी अँधा कर दिया था | राशि के प्रति जो बर्ताव घर वालो का था, वह वैसा ही बर्ताव अपनी बेटी से करने लगी थी | बात-बात पर चिड़चिड़ हो जाती , उखड़ी हुई सी रहती थी | आँखों से गीली आशाएं बहते रहने से , आँखों के चारो ओर काले घेरे पहरा देने लगे थे | निराशा ने उसके सारे शरीर को सुखा दिया था | ऐसे में उसने अपने साथ-साथ अपनी बेटी को भी बीमार कर दिया था |

दोनों की ऐसी हालत देखकर अमन कुछ दिन बाद राशि और अपनी बेटी को , राशि के मायके ले गया | अमन ने महीने भर की छुट्टी ले ली और वह भी इस पूरे महीने वहीं रहने वाला था |

राशि के मायके में उसकी माँ जहाँ राशि की बेटी का ख़याल रखती तो वहीं अमन राशि का ख़याल रखता | पहले-पहले राशि यहाँ भी उखड़ी हुई , गुमसुम और बिखरी हुई ही रहती थी लेकिन धीरे-धीरे वक्त ने मौसम को बदला , मौसम ने हालातों को और हालातों ने राशि की हालत में सुधार कर दिया |अब कोई उसे कुछ समझाता तो वह सुन लेती, अपनी बेटी से नजरे मिलाने लगी | राशि अब अपनी बेटी को माँ का प्यार देने लगी थी | अमन ने जब माँ को अपनी बेटी से खेलते हुए देखा तो वह भी खुश हुआ |

एक दिन राशि , अपनी बेटी को गोद में उठाये बाहर घुमाते हुए जब सुला रही थी तो राशि की माँ अमन को राशि की पुरानी चीजो दिखा रही थी | राशि के बचपन के कपड़े जिनमे उसके स्कूल की ड्रेस थी , उसके बचपन के जूतो के आलावा उसका गुलाबी रंग का हेयरबैंड अब भी बिलकुल नया दिखाई दे रहा था | अमन ने उसे हाथ में लिया और राशि की माँ से पूछा कि यह हेयरबैंड अभी भी इतना नया कैसे है ? तो माँ ने बताया कि राशि ने कभी इसे पहना ही नहीं , इसी बात में एक बात और जोड़ते हुए राशि की माँ ने बताया कि राशि को गुलाबी रंग बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था |

राशि अभी भी बाहर अपनी बेटी को गोद में लिए , थपकी देते हुए सुलाने और घुमाने में मस्त थी | इधर अमन  राशि की पुरानी चीजो को देखने में व्यस्त हो गया | जितनी चीजो को देखता , वह राशि के मन को उतना जान पा रहा था |

अमन को एक डायरी मिली , जिसमें राशि ने कुछ लिखा तो नहीं था लेकिन उसमे राशि की पुरानी तस्वीरे देखी तो अमन को   अंदाजा हुआ , उसके पास कोई और ही राशि है | इन तस्वीरो में राशि का खिलखिलाया हुआ चेहरा था और ख़ुशी से भरा हुआ चेहरा था ,और जिस राशि के साथ वह पिछले दो सालो से रह रहा था , उसका चेहरा हमेशा मुरझाया और खाली रहता था |

जैसे ही अमन ने डायरी बंद की उसे डायरी के आखिरी पन्नो में दबे हुए कुछ पन्ने साँस लेते हुए मिले , जिनमे राशि ने अपने जीवन की दास्ताँ लिखी हुई थी | शायद इसी दिन के लिए इन पन्नों में अभी जान बची थी , ताकि वो अमन को राशि के मन की व्यथा और दशा दोनों बता सके |

अगली सुबह अमन ने राशि के उठने से पहले ,उसके तकिये के पास में एक तोहफा रखा | राशि उठी तो उसने तोहफे में अपना वही बचपन का गुलाबी हेयरबैंड पहचान लिया , जिसे उसने कभी पहना नहीं था | उसमे कुछ पन्ने भी थे , जिनका पुराना रंग देखकर राशि समझ चुकी थी कि ये उसकी कविता है , जिसे वह लिखती रहती थी | इन पुराने पन्नो में एक नया पन्ना भी जुड़ा  हुआ मिला , जिसमे नई स्याही से एक नई कविता लिखी हुई थी |

शुक्र है तुम ‘लडकी’ हो
गर तुम ‘लड़का’ होती
लड़कपन में बेपरवाह भटकते रहना
आदमीपन में तुम्हे बहुत परवाह बना देता
लडकपन की खुशमिजाजी
आदमी बनते ही , माथे की लकीरों की गहराई में दब जाती
शुक्र है कि तुम लडकी हो
लडका होती तो
कंधो में दुप्पटा नहीं जिम्मेदारियों का बज्रपात गिरता
बचपन आँगन-मैदानों में गुजारने के बाद
जवानी किराए के कमरों में काटनी  पडती
शुक्र है कि तुम लडकी हो
लडका होती तो
घर-परिवार के लिए घर-परिवार से दूर रहना पड़ता
दौड़ते हुए ठोकर पैर पर लगती और चोट सिर पर खानी पडती
भूख का सम्बन्ध पेट से नहीं , दिमाग से होता
भूख सोचने पर लगती और सोचकर ही  मिटाई जाती
शुक्र है कि तुम लडकी हो   
लडका होती तो
ये गुलाबी हेयरबैंड किसके लिए खरीदा जाता
मुझे कैसे कोई ‘राशि’ भाती
इतनी प्यारी -नन्ही जिन्दगी को कौन जन्म देता
……….
…….
….
..
.

लड़का होना मेरा भाग है
और लडकी होना तुम्हारा सौभाग्य है … कविता की इन पंक्तियों ने उसके आँखों को गीला कर दिया | उसके जीवन का यह सबसे खूबसूरत पल था , क्योंकि किसी ने उसे पहली बार खुद के बारे सोचने को कहा था , दुसरो का ख़याल रखने के साथ-साथ अपना ख़याल रखने के लिए कहा , किसी ने उसके मन की बात समझी थी , किसी ने उसे महसुस कराया कि वह किसी के लिए कितनी ख़ास है | वह दुसरो की ख़ुशी में अक्सर अपने हिस्से की खुशियाँ ढूंढा करती थी ,लेकिन आज उसके हिस्से की खुशियाँ उसकी गीली आँखों में दिख रही थी |

किसी ने आज उसे एहसास कराया कि वह जो भी है , जैसी भी है बहुत अच्छी है | आखिरकार किसी नें राशि को खुद से प्यार सिखा दिया |

संसार में कुछ भी आदर्श नहीं है , कोई भी अपने आप में पूर्ण नहीं है | देखो तो हर चीज में कुछ न कुछ खामियां नजर आ ही जाती हैं , देखा जाय तो हर कोई व्यक्ति हर समय किसी न किसी परेशानी से चिंता में ही रहता है | इंसान को परेशानियों के होने के बावजूद खुश रहना आना चाहिए , खामियां होने के बावजूद चेहरे पर मुस्कुराहट बनाकर रखना आना चाहिए | ‘काश’ का सहारा लेकर दोहरी जिन्दगी जीना कमजोर लोगों की निशानी है , जो जैसा है उसे वैसी ही नजरो से देखना और अपनाना , जिन्दगी जीना आसान बना देता है |

अमन अभी भी सो रखा था, कुछ देर बाद नींद खुली तो बिस्तर पर न राशि थी और न ही उसकी बेटी … वह दौड़कर बाहर गया तो राशि ने अपनी बेटी सुमन को नहला-सहला तैयार करके रखा था | अमन अपनी बेटी सुमन के पास गया तो उसने देखा राशि ने सुमन को अपना गुलाबी हेयरबैंड पहना रखा था |

किताब-कहानियों में मिलने वाली सुन्दर परी जैसी दिख रही सुमन को अमन ने गोद में लिया और उसके साथ खेलने लगा | पीछे से राशि ने अमन की गोद में सुमन को हँसते-खेलते देखा तो वह जहाँ खड़ी थी वहीं ठहर गयी | ठहरकर शायद वह इस पल को हमेशा के लिए यहीं पर रोकना चाहती थी, जितना हो सके इसी पल में जीना चाहती थी |

सुमन के साथ खेलते-खिलाते हुए अमन की नजरे , राशि की नजरो से टकराई तो उसकी नजरे भी ठहर गयी | शायद अमन भी अपनी ठहरी निगाहों से इस पल को हमेशा के लिए यहीं पर रोकना चाहता था , जितना हो सके इसी पल में जीना चाहता था |

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