गढ़वाल में यदि ट्रेकिंग (पैदल सैर) नहीं की तो समझिए कि आप एक बड़े आनंद, रोमांच व अनुभव से वंचित रह गए। सच मानिए यहां दिलकश नज़ारे ऊंचाईयों में बिखरे पड़े हैं। जितनी ऊंचाई आप नापते हैं व छूते जाएंगे सौंदर्य के उतने ही नए घर खुलते जाएंगे। बस जरूरत है तो सिर्फ हौंसले व साहस की।
5 अक्टूबर, 2021
अक्टूबर का महीना था और दिल बहुत बैचेन हो रहा था घर पर क्योंकि काफ़ी वक्त से किसी पैदल सफ़र पर जाना नहीं हो पाया था। इसी बीच मेरा परम मित्र अभिषेक दस्तक देता हैं। अभिषेक (पहाड़ी दगड्या) का फोन आता है कल चलना है। मैंने पूछा कहां, तो अभिषेक भाई ने बताया कि हमें केदारनाथ जाना है, वो भी पैदल वाले रास्ते से(चौमासी से केदारनाथ)। तो तय हुआ कि कल जाना है। भुप्पी भेजी ने सबको बता दिया कि क्या-क्या लाना है, इसके लिए एक व्हाट्स ऐप ग्रुप बनाया गया। हम सब लोग पहली बार ही इस रास्ते से जा रहे हैं। मैंने भी कहीं इस रास्ते के बारे में पड़ा था और काफी पहले एक वीडियो भी देखी थी।और क्या पता इस से हमें रास्ते में जाते वक्त थोड़ा आसानी हो। बाकी सबने भी इसी प्रकार थोड़ा जानकारियां जुटाई हैं।
नोट – इस सफर में हमारे साथ अभिषेक, भुप्पी भेजी, अनुराग,नवदीप और मैं स्वयं हूं। इस यात्रा में हम कुल 5 लोग हैं।
6 अक्टूबर, 2021
मैं अपने चारों साथियों से कालीमठ वाली सड़क पर मिला(जो की कुंड से 6कि. मी. पर अलग हो जाती है)।ये लोग ऊपर गुप्तकाशी से आए और मैं इन्हें कालीमठ वाली सड़क पर मिला और फ़िर हम चौमासी के लिए रवाना हो गए। कोटमा में हमने दिन का भोजन किया और आगे के दिनों के लिए थोड़ा बहुत जरूरत का सामान रखा, फिर हम आगे की ओर चल पड़े। यहां से कुछ 12कि.मी. पर चौमासी है। हम चौमासी पहुंच गए हैं। यह गांव प्रकृति की सुरम्य गोद में बसा है। यहां लोग भोले-भाले, दया व स्नेह से भरे हुए हैं। खेती और जंगल से इनका अटूट रिश्ता है।
यह गांव 6562फीट(2000मी.)की ऊंचाई पर बसा है। यह गांव प्रकृति के बहुत नज़दीक है। चौमासी पहुंचते ही हमने जीप की छत से पिट्ठुओं को उतारा। हमने गांव के किसी ग्रामीण से यात्रा पड़ाव की पूरी जानकारी ली, उन्होंने हमे बताया कहीं जगह रास्ते बने हुए हैं और कहीं जगह रास्ते बीहड़ दुर्गम भरे हैं। हमने हौसले बुलंद रखें और अपनी पैदल यात्रा शुरू की। चौमासी से 1½ मिल जाने पर निबतर गांव है, जहां अभी मोटर मार्ग का कार्य चल रहा है। गांव में कुछ ही परिवार रहते हैं, गांव काफी छोटा सा है, कुछ 9 से 10 पक्के मकान होंगे। धूप काफी ज्यादा है इसलिए सारे साथी पसीने से तरबतर हो रखे हैं। रास्ते में थोड़ा रुके और पानी पिया, फिर आगे की ओर चल पड़े। आगे एक चढ़ाई है जो कि काफी खड़ी है और इसके तुरंत बाद आता है पयालु बुग्याल।
यह बुग्याल 7382 फीट (2250 मी.) की ऊंचाई पर है। यहां पर पाल्सी (भेड़ पालक) लोगों की कुछ छानियां हैं। हमसे पहले यहां पर गांव के कुछ लोग आए थे, जिनके साथ कुछ यात्री हैं, जो की अभी नहीं पहुंचे हैं। उनसे हमने थोड़ा रास्ते के बारे में जानकारी ली, वैसे भी वो यहीं के निवासी हैं। उन्होंने हमे बताया कि हमारा सफ़र तुम्हारे साथ कुछ ही आगे तक होगा और हम वहां से रामबाड़ा की तरफ़ निकल जाएंगे। पिट्ठू उठाए और आगे की ओर चल पड़े। समय लगभग 4:00 बज चुके हैं। रास्ते में झरने अलग ही आकर्षण पैदा कर रहे हैं, कईं जगह हमें छोटी नदियों और नालों को लांगकर जाना पड़ रहा है, प्रकृति की इस छवि को देखकर हम बरबस मंत्रमुग्ध थे।
कुछ ही देर बाद हम द्यूली बुग्याल पहुंचे। समुद्र तल से यह बुग्याल 8956फीट (2700मी.) की ऊंचाई पर स्थित है। अंधेरा भी लगभग हो चुका है, दूर घाटी में रोशनीयां टिमटिमा रही हैं, जो कि कालीमठ घाटी के गांव है, दूर कहीं गुप्तकाशी भी दिखाई दे रहा है। यहां इन दिनों भेड़ पालक भी हैं। तंबू लगाने के लिए भुप्पी भेजी ने जगह की तलाश शुरू की। फिर वहां पर भेड़ पालकों के भोटिया कुत्ते हमसे भेंट करने आए। यह भुटिया कुत्ते मनुष्य के साथ काफी परीचित होते हैं। भुप्पी भेजी ने कहा जल्दी टेंट लगाते हैं क्योंकि अंधेरा लगभग होने ही वाला है और आदेश दिया दो लड़के पानी लेने जाओ, तो पानी लेने अनुराग और नवदीप चले गए, बाकी हम तीनों तंबू लगाने के कार्य में जुट गए। जो लोग हमें द्यूली बुग्याल में मिले थे, वह भी यहां पहुंच चुके हैं लेकिन उनके यात्री अभी तक नहीं पहुंचे हैं। उनका रात्रि विश्राम भी यही होगा बाकी पर कल वह आगे से हम से अलग हो जाएंगे। भुप्पी भेजी ने मुझे और अभिषेक को कहा तुम दोनों लकड़ी का इंतजाम करो, फिर हम दोनों लकड़ी की तलाश में निकल पड़े। जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ रहा है वैसे-वैसे ठंड और ज्यादा बढ़ रही है। हम दोनों लकड़ी लेकर पहुंच चुके हैं और अब लाइट का भार अभिषेक पर है। किचन के लिए हमने तंबू के प्रवेश पर ही जगह बनाई है।
खाना बनाने की मुख्य भूमिका में भुप्पी भेजी है। खिचड़ी का प्रेशर स्टोव पर भुप्पी भेजी द्वारा चढ़ा दिया गया है। और उधर अनुराग और नवदीप आग जलाने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि ठंड काफी ज्यादा है। लकड़िया थोड़ा गीली सी है, उन पर हमने डीजल डाला पर फिर भी आग नहीं जली, फिर आखिर में थोड़ा सा आज जली लेकिन थोड़े से समय के लिए। थोड़ा देर तक बैठे रहे, फिर उतने में खिचड़ी भी तैयार हो चुकी है। आधे घंटे में सब ने भोजन किया, फिर वहां पर वह भोटिया कुत्ते खिचड़ी की सुगंध से आ पहुंचे, उसमें जितना बचा था वह सब उनके लिए ही हुआ। दस बजे से पहले पहले सब सेट हो चुका था। कुछ देर तक कल के सफर पर चर्चा हुई, कि आगे का क्या प्लान होगा। उसके बाद अभिषेक ने लाइट बंद की, फिर क्या – शुभ रात्रि।
7 अक्टूबर, 2021(द्यूली बुग्याल)
सुबह जल्दी उठे क्योंकि अभी हमें काफी दूर तक जाना है और सफर लंबा है। धूप ने भी अपनी दस्तक दे दी है। नाश्ते में भुप्पी भेजी ने सैंडविच बनाई थी, वह और उसमें इस प्रकार की चीज ही डाली गई थी जिससे कि हमारे अंदर थोड़ा ताकत आ जाए, फ़िर नाश्ता करने के बाद दल 9:00 बजे के आसपास आगे के लिए रवाना हुआ। अब हमें थोड़ा घने जंगल में प्रवेश कर चुके हैं। ज्यादा पेड़ बांस की ही है, ज्यादा थकान नहीं लग रही है, रास्ते में कहीं कहीं पर हम पानी पी रहे हैं( ग्लूकोज और पानी का घोल बनाकर)।
लगभग 2 घंटे के बाद हम छिपी बुग्याल पहुंची। यह बुग्याल समुद्र तल से 10275 फी.( 3131मी.) की ऊंचाई पर है। यहां भी कैंपिंग के लिए अच्छी जगह है, पर हमें अभी काफी आगे तक जाना है। हमने रात को ही तय किया था कि आज हमें कैंप खाम बुग्याल में लगाना है, इसलिए यहां रुकने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। 11:30 के आसपास का समय हो चुका है, सबको थोड़ा-थोड़ा थकान महसूस हो रही है। इसलिए तुरंत प्लान हुआ कि मैगी बनाई जाए। भुप्पी भाई ने अपने पिट्ठू से स्टोव निकाला और अनुराग ने अपने पिट्ठू से पतीला निकाला। फिर तुरंत स्टोव पर पतीला रखा और अभिषेक ने तुरंत खूब सारा प्याज टमाटर काटा। कुछ ही देर में मैगी तैयार हुई और सब ने मैगी का आनंद लिया। उसके बाद सब सामान फिर से पैक हुआ और आगे के लिए हमारा दल चल पड़ा। थोड़ा आगे जाने पर खड़ी चढ़ाई आ चुकी है, यहां पर एक समस्या उत्पन्न हुई, अभिषेक भाई के बैग के किनारे पर जो डीजल की 2 लीटर की बोतल थी, वह नीचे खाई की ओर जा गिरी। मैं और अनुराग अभिषेक से पीछे थे, तो हमने तुरंत ही अपने पिट्ठू उतारे और बोतल की खोज में नीचे की ओर भाग गए। अनुराग काफी नीचे तक गया, इतने में अभिषेक भी आ गया। अभिषेक को बोतल मिल गई, सबकी सांस में सांस आई क्योंकि कि हमारे लिए काफी जरूरी चीज है क्योंकि डीजल का प्रयोग हमने ईंधन के रूप में करना था। आज हम फिर आगे के लिए चल पड़े। सबका शरीर पसीने से तरबतर हो चुका है, इसलिए सभी लोगों ने अपनी जैकेट उतारकर पीछे की तरफ़ बांध दी है। चलते-चलते एक गुफा सी दिखाई दी, जो कि खाड़खर्क के पास है। इस गुफा में 5 लोग आराम से आ सकते हैं। यहां पर चाहे तो लोग रात्रि विश्राम भी कर सकते हैं। कुछ ही देर बाद हम खेडुरा बुग्याल पहुंचे।
खेडुरा बुग्याल समुद्र तल से लगभग 11000 फी.(3365 मी.) की ऊंचाई पर है। अभी दिन के लगभग 12:30 बजे हैं हमारा आज का गंतव्य खाम बुग्याल है। यहां पर थोड़ी देर रुके और जलपान किया क्योंकि सभी के शरीर को थोड़ी फुर्ती और ताकत की जरूरत है। इसके बाद कुछ समय में ही हम दूर खाम बुग्याल दिखाई दिया, यह बुग्याल काफी दूर तक फैला हुआ है और काफी बड़ा है।
खाम बुग्याल समुद्र तल से लगभग 11850 फी. (3618 मी.) की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से एक रास्ता रामबाड़ा को जाता है। जो लोग हमें कल मिले थे उन्हें यहीं से मुड़ जाना है और हमें सीधे आगे की तरफ जाना है। यहां से निगाहें आगे थोड़ा ही तो काम का पूरा मैदान दिखा। हमें अभी काफी आगे तक जाना है। चलते चलते हम खाम के लगभग आखिरी छोर तक पहुंच चुके हैं, यहां पर टेंट लगाने के लिए अच्छी जगह है इसलिए बड़े भुप्पी भेजी ने तय किया कि आज रात्रि का विश्राम यही होगा। यहां काफी ज्यादा ठंडा है क्योंकि इसके सीधे आगे बड़े बड़े ग्लेशियर है, जहां से ठंडी हवाएं आ रही है। सपने मिलकर टेंट लगाया, कुछ ही देर में टेंट सेट हो चुका है, इसके बाद तुरंत चाय बनाने का इंतजाम किया क्योंकि बाहर काफी ठंड है। चाय तैयार हुई चाय पीने के तुरंत बाद सब कुछ न कुछ काम करने में जुट गए। फिर इसके बाद तय हुआ कि आज रात्रि में दाल चांवल बनेगा। कुछ डेड घंटे में खाना तैयार हुआ, सपने रात्रि का भोजन किया। खाना खाने के बाद थोड़ा बहुत बातें हुई क्योंकि आज सफर काफी लंबा था, इसलिए सब लोगों को थकान भी लगी हुई है। सबको नींद आ रही है, अभिषेक ने लाइट बंद करें और सब सो गए।
8अक्टूबर, 2021(खाम बुग्याल)
सुबह करीब हम 7:00 बजे के आसपास उठे। बाहर का दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो हम स्वर्ग में हों,सूर्य की किरणें ऊपर चोटियों पर पड़ रही है। और मैं उसे यहां शब्दों में नहीं कर सकता हूं। सामने हिमालय की चोटियां हैं और उसकी जड़ तक खूबसूरत बुग्याल फैला हुआ है। बहुत ही सुंदर दृश्य है। आज हमें लगभग 8 किलोमीटर का सफर करना है जो कि यहां से सीधे केदारनाथ तक का होने वाला है।
9:00 बजे के आसपास धूप चारों तरफ आ चुकी है, हिमालय सोने से युक्त किसी आभूषण की तरह लग रहा है। इसी बीच नाश्ता तैयार हुआ, आज नाश्ते में भुप्पी भेजी द्वारा हलवा बनाया गया है। हलवा खाने के बाद सबने सारे महत्वपूर्ण काम निपटाए और आगे के लिए प्रस्थान किया। दल की अगुवाई अभिषेक और भुप्पी भेजी कर रहे हैं। 11:00 बजे हम बल्दजौत्या(बल्दजौत्या – बल्द अर्थात बैल और जौत्या अर्थात जोता हुआ, स्थान जहां पर बैलों द्वारा जोता गया हो) पहुंचे। पास ही खाम नदी है। चलते चलते नीचे एक पुल पर नजर पड़ी, यह वही रास्ता है जो मनणी बुग्याल की ओर जाता है, अभिषेक ने बताया। हमें बर्फीले पहाड़ के नजदीक से ही बाईं तरफ जाना है। जो टॉप ऊपर दिख रहा है, वहीं हमें जाना है और उसी टॉप का नाम हथिनी टॉप है, भुप्पी भेजी ने कहा। यह बहुत ही ज्यादा खड़ी चढ़ाई है और यहां कोई रास्ता नहीं है। यह चढ़ाई लगभग 2½ से 3 किलोमीटर की है। कहीं कहीं पर तू इतनी खड़ी चढ़ाई है कि यदि कहीं भी अगर संतुलन बिगड़ता तो हम सीधे नीचे खाई की ओर गिर जाते। अगवाई अभिषेक ने संभाली हुई है।
विकट चढ़ाई को हद तक जूझते-झेलते हम 2:00 बजे टॉप पर पहुंचे, हमने यह चौड़ाई लगभग 3 घंटे में पूरी की। सबने यही कहा कि “सचमुच हथिनी टॉप की चढ़ाई थका देने वाली थी”। यह चढ़ाई मुझे हमेशा याद रहने वाली है। यहां पर हमने थोड़ी देर आराम किया यहां पर फॉरेस्ट विभाग द्वारा कैमरे लगाए गए हैं, जो कि जानवरों की फोटो खींचने के लिए है।
हथिनी टॉप समुद्र तल से 14436 फी.(4400 मी.) की ऊंचाई पर है। यहां से रास्ता ढूंढने में थोड़ा तकलीफ हुई क्योंकि कोहरे के कारण कुछ नहीं दिख रहा है। कुछ देर इंतजार करने के बाद कोहरा छटने लग गया, अब यहां से बहुत उतराई है, सबने अपने अपने पिट्ठुओं को कसा और आगे की ओर बढ़ चले।
इस समय आगे की अगुवाई भुप्पी भेजी कर रहे हैं, यहां से भुकुंड भैरव और केदार पूरी अब दिखने लगी है। हमें अभी भी 2 किलोमीटर जाना है। अभिषेक और भुप्पी भेजी हमसे कुछ आगे निकल चुके हैं। वह हमसे कुछ 20 मिनट पहले ही केदारपुरी पहुंच चुके हैं, पहुंचते ही सब बंदोबस्त कर दिया है ।जिनके यहां हम ठहरे हैं उनका नाम आशीष शुक्ला भाई हैं, जो की भुप्पी भेजी के ही मित्र हैं। हमने चाय पी और संध्या आरती के लिए देवालय की तरफ पहुंच गए । आरती काफी आनंदमयी रही। हम काफी थके हुए थे इसलिए हमने आरती के तुरंत बाद ही भोजन किया और सोने के लिए चले गए।
9 अक्टूबर,2021
कल रात को ही वासुकी ताल जाने का निर्णय बन गया था।इसलिए आज हमें वासुकी ताल की चढ़ाई करनी है, जो कि 8 किलोमीटर की है, इसलिए हम सुबह ही निकल गए हैं क्योंकि वहां जल्दी कोहरा लग जाता है और रास्ता खो जाने का डर रहता है। वासुकी ताल समुद्र तल से लगभग फी.(मी.) ऊंचाई पर स्थित है। यहां से सुमेरू और केदार डोम पर्वत ऐसा लग रहा है, जैसे कि हम अभी हाथ आगे करेंगे तो सीधा ही उसको छू लेंगे। रास्ते में काफी आनंद आ रहा है। रास्ते में बीच में एक जगह आती है, जहां से आपको कुछ पर्वत श्रृंखलाएं दिखेंगी, तो वहां से आपको नंदा देवी पर्वत भी दिखेगा कई सारी और चोटियों दिखेंगी। हम यहां दिन के करीब 12:00 बजे पहुंचे, बीच में हमें एक दूसरा रास्ता भी दिखा, जो कि त्रियुगीनारायण की ओर जाता है। वासुकी ताल सच में बहुत बड़ा है, अगर आप इसे फोटो में देखोगे तो यह आपको छोटा लगेगा लेकिन जब आप इसे वास्तविकता में देखोगे तो यह बहुत बड़ा है। यहां से एक रास्ता ऊपर की ओर जाता है, अगर आप वासुकी ताल से 4 किलोमीटर ऊपर जाओगे तो आपको मसर ताल मिलेगा और अगर आप उससे भी ऊपर जाओगे तो आपको एक पास मिलेगा जिसका नाम मयाली पास है। यह वही पास है जो कालिंदीखाल ट्रेक करते वक्त बीच में पड़ेगा। यह पास कई और सारे ट्रेकों का भी रास्ता है। इसके बाद हम वापसी के लिए रवाना हुए। 4:00 बजे से पहले पहले हम केदारपुरी पहुंचे। फिर हम संध्या कालीन आरती में शरीक हुए।
सच बताऊं तो यहां एक अलग सुकून तो है लेकिन अब यहां भीड़-भाड़ बहुत ज्यादा हो चुकी है और काफी भारी मात्रा में यहां निर्माण हुआ है, जो कि शायद मुझे लगता है नहीं होना चाहिए था। और इन चीजों ने इन यात्राओं को काफी आसान बना दिया है, जो की शायद कभी होनी नहीं चाहिए था। क्योंकि यह जो दूर-दूर मठ बनाए गए हैं यह मोक्ष प्राप्ति के लिए बनाए गए थे ताकि इंसान मोक्ष प्राप्त करने आए लेकिन जब आप यात्रा को इतना सरल बना लेंगे तो आपको इतनी दूर आने का क्या फायदा होगा। यह एक टूरिस्ट स्पॉट या फिर आपके लिए पिकनिक नहीं है यह एक धार्मिक स्थल है। यहां भारी निर्माण होना भी बहुत गलत है,इससे आपदाओं को न्योता मिलेगा आने का, कि आप शायद 2013 में देख चुके हैं। बाकी मैं इस विषय पर ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। आप लोग भी समझदार हैं कि क्या होना चाहिए और क्या नहीं। बाकी हमने इस यात्रा में ज्यादा तस्वीरें नहीं खींची, बाकी यह भी कहना सत्य है कि यादें तस्वीरों में हमेशा कैद रहती है, जब आप कभी भी उस तस्वीर को 20 से 30 साल बाद निहार होगे तो आपको याद आएगा कि आप कहां गए थे आपके साथ कौन-कौन थे, तो आपको वह पल याद आएंगे। इसलिए यात्रा में तस्वीरें लेनी चाहिए। बाकी आरती के बाद हम देर से सोए क्योंकि कल सबको घर निकलना है, तो हमने रात्रि में काफी बातें की। से हम करीब 11:00 बजे के आसपास सो गए।
10 अक्टूबर, 2021
आज सबको अपने अपने घर के लिए निकलना है। हम केदारपुरी से करीब 9:00 बजे गौरीकुंड के लिए निकले। हमने आशीष शुक्ला भाई से विदा ली और केदार बाबा को प्रणाम करते हुए अपने घर की ओर निकल पड़े। हम काफी तेजी से नीचे की ओर जा रहे हैं, हम करीब 1:00 बजे से पहले पहले गौरीकुंड पहुंचे। गौरीकुंड से हमने गाड़ी बुक करी जो कि गुप्तकाशी तक जाएगी। 2:30 बजे के आसपास हम गुप्तकाशी पहुंचे, यहां से मैंने सब लोगों से विदा ली, थोड़ा सा भाऊ था लेकिन अभिषेक भाई से वादा किया कि जल्द ही अगले साल किसी नई यात्रा में मिलेंगे। मैं गुप्तकाशी से सीधे अगस्त्यमुनि वाली गाड़ी में बैठा। और मेरे बाकी साथियों को उखीमठ के लिए निकलना है। सब से विदा ली और मैं अगस्त्यमुनि के लिए निकल पड़ा।
अंत में मैं आपको को यही संदेश देना चाहूंगा की यात्राएं करते रहे क्योंकि यात्राएं हमें बहुत कुछ सिखाती है, बहुत से रूपों में बड़ा करती हैं, बहुत सारी चीजें जानने को मिलती हैं।
वास्तव में यह एक सौंदर्य स्वर्ग की नायाब साहसिक यात्रा थी, जिसने हमारे आत्मबल को नया आयाम प्रदान किया।
यायावर :विपिन चौहान ….
बसन्त ऋतु और बसन्त ऋतु का स्वागत
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धुमाली गाँव की एक बच्चे की कहानी