पहाड़ का युवा

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री जी ने कहा था “पहाड़ की जवानी ,पहाड़ के  पानी की तरह  ,पहाड़ के काम नहीं  आती”। यह कथन वास्तविकता की सभी कसौटियों को पूरा करता था ।
पहाड़ का एक आम युवा अपनी शिक्षा पूरी होने बाद जब रोजगार की तलाश करता है  तो उसके सामने सबसे पहले भारतीय सेना में भर्ती होने की चाहत रहती है , और वह सफल भी होता है तो असफल भी।
2-3साल  भारतीय सेना में भर्ती होने के सभी प्रयासों में लगाने के बाद इस पहाड़ के युवा पर अब नौकरी का दबाव पड़ता है, ऐसे में जब पहाड़  में किसी प्रकार का उसे रोजगार नहीं मिलता,  मजबूरन उसे पहाड़ के गांवों को छोड़कर मैदानी शहर के जाना पड़ता था, मजबूरन पहाड़ को सुनसान होना पड़ता था । जैसे पहाड़ का पानी यहाँ की उपजाऊ मिट्टी को भा लेता है, वैसे ही पहाड़ के एक आम युवा की के शहर जाने से पहाड़ की प्रतिभा भी यहाँ से निकलती जाती । अपनी योग्यता और क्षमताओं के विपरीत उसे मजबूरन वो करना पड़ता था जो वो कभी करना ही नही चाहता था, कुछ वक्त संघर्ष करने के बाद उसे हालातों से समझौता करना पड़ता था,  अपनी जरूरतों और चाहतो को दबाकर वह अपनी कमाई बचाने की उसकी जद्दोजहत जारी रहती है।
 
घर वालों के लिए इतना काफी रहता है कि उनका लड़का बाहर शहर में नौकरी कर रहा है ।अब नौकरी क्या  है? कैसी है?कहाँ है? ये उनके लिए उतना महत्ब नहीं रखता है ,हाँ,बस हफ्ते-दो-हफ्ते  में बेटे की राजी-ख़ुशी का मिलती रहे, वे इतने में ही ख़ुश और संतुष्ट रहते हैं।
 
ये तो बात थी सिर्फ शुरूआती सालों की जब पहाड़ के एक आम युवा  को बाहर जाना पड़ता था । और इन शुरुआती सालों के बारे में अब हर कोई जानता है, इसलिए जब भी कोई नया लड़का बाहर शहर जाता है तो वह आसानी से समझौता कर लेता है  और अपनी आगे की समय यात्रा जारी रखता है।
 
लेकिन अब जब समय के साथ-साथ हालात भी बदल चुके हैं, पहाड़ का सारा युवक वापस अपने पहाड़ लौट चुका है,और इस बार वह एक नया रूप लेकर वापस आया है, यह युवा अब  रोज़गार खोजने में विश्वास नहीं  रखता बल्कि रोजगार  बनाने में विश्वास रखता है ।।
ये जो ऊपर कथन लिखा गया था कि “पहाड़ का युवा ,पहाड़ के काम नहीं आता” वह  इस कथन को लगातार गलत साबित कर रहा है।
 
 पहाड़ का यह युवा दिखा रहा  है कि वह यहीं अपने गांव में रहकर अपने लिए रोजगार का निर्माण कर सकता है।
   वह य बाहर से सीखी कला के माध्यम से अपने लिए रोजगार बना रहा है।
सैलून, बैकरी, मुर्गी फॉर्म, डेयरी उद्योग, मत्स्य पालन आदि परम्परागत व्यापार तो कर ही रहें हैं। Youtuber, Social Media Influencer, Digital Marketer आदि मॉर्डन व्यापार जिसका प्रचलन अब तक सिर्फ  शहरों तक ही था ,अब गाँव का एक आम युवा भी अपनी प्रतिभा ,पैशन को अपने प्रोफेशन में बदल पा रहा है। यह पहाड़ का युवा अपने साथियों को साथ मे लेकर आगे बढ़ रहा है।
युवा अब सच मे पहाड़ के काम आ रहा है।

 

 
बस इस समय जरूरत है कि इस युवा को सरकार द्वारा लगातार प्रोत्साहन मिलता रहे, और समाज के लोग उसे  ,उसके काम को लेकर वर्गीकृत न करें ।।।
 
चित्र:-  स्वरोजगार करता युवा..

 

 
 
 
 
 
 
 
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