अक्टूबर : खत्म नहीं ,अभी शुरू हुआ है |

अक्टूबर! खत्म होने वाला है | लेकिन जो ये अपने साथ लेकर आया है, वह नहीं | हर साल जब भी अक्टूबर आता है, अपने साथ दशहरा-दिवाली की छुट्टियाँ लेकर आता है | घर , इन तीन दिन के त्यौहार पर हफ्ते भर कि छुट्टी लेकर घर आये लोगों से भर जाता है और ये लोग घर आने की ख़ुशी से ही भर जाते हैं | एक वक्त था जब सभी भाई-बहिन एक घर की छत नीचे बात-बात पर लड़ाई करते थे , लेकिन अब एक दुसरे से इतनी दूर हो गये हैं कि , बातबात पर लड़ाई तो दूर , ठीक से बात तक नहीं हो पाती है |

ऐसे में अक्टूबर की छुट्टियाँ , कुछ ही दिनों के लिए सही, सबको साथ आने का मौका देती  है | त्यौहार पर शादियों का माहौल रहता है | ऐसे में परिवार के दूर-नजदीक के सभी रिश्तेदारों को एक होने की वजह मिल जाती है | त्यौहार और शादियों की चकाचौंध खत्म होने के साथ-साथ , छुट्टियाँ भी खत्म होने लगती हैं और अक्टूबर अपना असली रंग दिखाने लगता है |

सबके चले जाने गाँव फिर अपने खोते हुए वजूद की हालात में वापस लौट आता है, घर फिर से मकान बन जाता है | तीन दिन के त्यौहार की खुशियों की चकाचौंध , अगले तीन मौसमो तक आँखों के सामने आने के लिए यादों के घर में एक कोना पकड़ लेते हैं |

अपने घर की छत छोडकर, सभी अपने-अपने घरों की छत के नीचे पहुँचते ही, घर की छत को याद करने लगते हैं |

यहाँ से अक्टूबर!खत्म नहीं, शुरू होने लगता है | अभी तक सिर्फ गर्मी कम हो रही थी लेकिन अब सर्दी बड़ने लगती है | मौसम शुष्क होने लगता है, पेड़ो के पत्ते पीले पड़कर गिरने लगते हैं , हवा में नमी अब खत्म होने लगती है | इसलिए अब जब हवा चेहरों को छूते हुए ,कानो पर पडती है तो , ठंडक नहीं, सर्दी देती है | जब हवा में नमी रहती थी तो उसमे एक धीमी आवाज रहती थी जो कानो पर पड़ते ही , दिल को सुकून देती थी | लेकिन अब इसमें तेज खामोशी रहती है, यह ख़ामोशी जब कानो पर पडती है तो दिल में चुभन होने लगती है |

एक धूप ही रहती है ,जिसपर पर खुशियों और राहतो का सारा दारोमदार रहता है , वह भी अब दिन में देर से आना और शाम को जल्दी चले जाना शुरू कर देता है |

अक्टूबर ! काटना उतना कठिन नहीं होता है | इसे हमेशा कठिन और दर्दनाक बनाता है , अक्टूबर की शाम | जिस तरह गर्मियों के दिन और सर्दियों की राते काटना मुश्किल होता है , उसी तरह अक्टूबर की शामें भी होती हैं | दिन , धूप में सूरज के साथ भागदौड़ करके जैसे-तैसे गुजर ही जाता है , लेकिन ये शाम है कि कटने से कटती नहीं |  कमरे की चौखट पर हाथ पर चाय की गर्म प्याली, ठंडी पड़ने लगती है , जब साल भर की यादे, अफ़सोस बनकर मन को भारी करने लगती हैं | सारी उम्र भर की चिंताए , साथ में चौखट पर बैठी हुई मिलती हैं |  इस समय चिंताए , समस्याए और चुनौतियाँ , खुद से बड़ी लगती हैं , जिम्मेदारियां खुद पर भारी लगती हैं | दिन भर मुस्कुराहट से चमकते हुए चेहरे का झूठ पकड़ा जाता है ,जब चेहरे पर माथे की शिकने दिखने लगती हैं |

ऐसे में गर्दन इधर-उधर घुमती है ,निगाहें यहाँ-वहाँ किसी को ढूढ़ती हैं , बाहें आस-पास किसी को पास बुलाने के लिए फैलती हैं |  ये घूमने , ढूंढने और फैलने की सारी कोशिश नाकामियाब ही रहती है | क्योंकि इस वक्त इधर-उधर, यहाँ-वहाँ और  आस-पास कोई नहीं होता है | 

ऐसे में अपनी गर्दन को खुद अपने ही कंधे का सहारा देना पड़ता है, निगाहों के सामने खुद को ही देखना पड़ता है , खुद की बाँहों में ही खुद को समेटना होता है |

अक्टूबर की शाम में अकेलापन आर खालीपन महसूस करना आम होता है | जिसे दूर नहीं किया जा सकता है | ऐसे में अकेलेपन को एकांतपन में बदलना होता है और उम्र के अफसोसो से पनपे खालीपन को नई उम्मीदों और आशाओं से भरना होता है |  हथेली पर रखी चाय ठंडी हो गयी तो कोई बात नहीं , उसे दुबारा गर्म करना मुश्किल नहीं होता है | छिपते हुए सूरज को देखकर अफ़सोस नहीं करना होता है , वो डूबते-डूबते हुए भी अपने पीछे एक सुंदर नजारा छोड़ता है | इसी तरह कुछ मनपसंदीदा लोग जब , दूर चले जाते हैं तो जाने का अफ़सोस नहीं करना होता है , बल्कि उन्होंने जो आपके लिए अपनी यादें छोड़ रखी हैं,उसके लिए आभारी और खुश होना पड़ता है |

अपनी अदालत में खुद को कटघरे मे रखकर खुद को बेगुनाह साबित करने लिए खुद ही , खुद की वकालत करनी पडती है | उन तमाम चोटों और अत्याचारों , जो जाने अनजाने में हमने खुद के साथ किये है , उनके लिए अक्टूबर वह वक्त होता है जिसमें खुद को माफ़ करना होता है |

अक्टूबर सिर्फ साल का एक महीना नहीं , बल्कि यह एक मौसम है | यह सिर्फ साल में नहीं आता है , यह हमारी जिंदगियों में आता रहता है | यह खुशियों की आंधी के बाद , तन्हाईयों के रूप में छाई हुई तबाही है | इस तबाही से उभरने के लिए की गई सारी कोशिशे नाकामियाब रहती हैं | यहाँ हमारा कुछ भी करना , कुछ न करने के बराबर होता है | यह महीना हमे धैर्य रखना सिखाता है , एकांत में बैठकर जीवन का अवलोकन करना सिखाता है | बेहतर जीवन को जीने के लिए हमे तैयार होना सिखाता है |

साल का अक्टूबर हमें आने वाली सर्दियों के लिये तैयार करता है , और जीवन का अक्टूबर हमें आने वाली बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है | सडक के मोड़ो पर गाड़ी को धीरे से मुड़ना होता होता है , इसी तरह जीवन को नई दिशा देने के लिए मोड़ो पर हमें भी आराम से धैर्य के साथ मुड़ना होता है | अक्टूबर का यह मोड़ , हमे यही तो सिखाता है ………………………………………………………………………………………………………..{to be continued}

…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….पूरा पढने के लिए धन्यवाद |

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3 thoughts on “अक्टूबर : खत्म नहीं ,अभी शुरू हुआ है |”

  1. अक्टूबर ओर फरवरी का महीना हमेशा उलझनों से भरा होता है पर साल के सबसे शानदार दिन इन्ही महीनो में होती है यह हमेशा आगे आने वाली खुशियां का अहसास कराती है।

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  2. अक्टूबर सचमुच बहुत कुछ सिखाता है।
    पर आपकी कलम भी बहुत कुछ सिखाती है।

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