पौढ़ी में कभी दोपहर नहीं होती है … एक खूबसूरत शाम होती है

पौढ़ी में कभी दोपहर नहीं होती है ,सुबह होती है, दिन चढ़ता है और सीधे शाम होती है |  दोपहर के समय ही पौढ़ी की धूप , पौढ़ी को अलविदा कहकर , सामने के पहाड़ की तलहटी में पौढ़ी की छाया बना देती है | गर्मियों में इस धुप का जाना , किसी को प्रभावित नहीं करता , हाँ लेकिन सर्दियों में छत में जाते ही धुप जब एक घर की छतों को छोडकर दूसरी , तीसरी करके जाने लगती है , तो अच्छा नहीं लगता |

छत पर स्वेटर बुन रही , | हाँ , बात अलग है , धूप के चले जाने से उनकी बुनाई पर  कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है | बुनाई के लिए इस वक्त धागे से ज्यादा जरुरी , सामने एक सुनने वाला होना चाहिए बस , फिर देखो हाथ और मुंह कैसे साथ-साथ चलते हैं |

खैर … इस बीच इधर बाजार का रुझान कुछ फीका पढ़ जाता है , कुछ देर के लिए सन्नाटा सा पसर जाता है | बाजार में कोई खरीददार रहता नहीं है  इसलिए कुछ देर पहले एक-दुसरे से दुकानदारी की प्रतिस्पर्धा करने वाले दुकानदार इस वक्त लूडो में प्रतिस्पर्धा करते हुए दिखाई देते हैं | पौढ़ी की संकरी सड़को पे एकाध गाड़ियाँ ही आजादी से दौड़ लगाती हुई दिखती हैं | सडक पर ख़ाली जगह पाते ही , गायों के छोटे -बड़े समूह का नेतृत्व कर रहे सांड इस समय सड़क पर ,कहीं भी लेट जाते हैं और जुगाली करना शुरू कर देते हैं |

दरअसल धूप के जाते ही , पौढ़ी की सर्दी बढ़ जाती है |  सर्दियों में कभी स्वेटर तो उतरती नहीं है , इसलिए धूप जाते ही , इस स्वेटर पर जैकेट चढ़ जाता है , या फिर कोई शौल ओढ़ लिया जाता है |

इन जैकेट और शौल को लिए ये शरीर , घुमने के बहाने ,पौड़ी की धूप की तलाश में ल्वाली घाटी , टेका, अद्वाणी रोड पर चले जाते हैं | जहाँ शाम के वक्त भी दोपहर की धूप नजर आती है | सडको के किनारे बेंच पर बैठे लोगो के गुट सूरज से नजरे मिलाकर बाते किया करते हैं |

छोटी-छोटी उम्र के बच्चे कंडोलिया पार्क में खेलते हैं , उनसे थोडा बड़े बच्चे कंडोलिया फ़ील्ड में फुटबॉल खेल रहे होते हैं| उसी के एक कोने पर क्रिकेट की नेट प्रैक्टिस भी चल रही होती है |

इनसे और बड़ी उम्र के लड़के ,अपने एक मात्र सपने को पूरा करने के लिए रांसी स्टेडियम में दौड़ लगा कर , इन सपनो का पीछा कर रहे होते हैं |

इधर टेका-अदवाणी रोड पर कुछ लडको  के गुट एक अच्छी और एकांत जगह की तलाश में चले जाते हैं , जहाँ सिगरेट के धूएँ से वे कुछ कलाकारी कर सके | इस साफ़-स्व्च्छ जगह में गंदगी के अपने कुछ निशान छोड़ सके |

सडको के किनारे लगे बेंचो पर ,लोग बैठे हुए मिलते हैं | पिछले तीन सालों से इस सडक पर घूमते हुए सडक के निचले छोर से दीवार तक बन रही तीन दोस्तों की परछाइयां अक्सर साथ-साथ चलती हुई दिखाई देती थी |

राहुल , नीरज और पंकज अक्सर शाम को इस तरफ घूमना पसंद करते थे | तीनो ने इस बीच , इस सडक पर  बच्चो को साईकिल दौड़ते हुए , बड़े होते हुए देखा है ,आंटी-अंकल लोगों को अपना वजन कम करते हुए देखा है , सडक पर  के मोड़ो पर , जवान लड़के और लडकियों की  बनती-बिगडती प्रेमकहानियों को देखा है |

ऐसे ही एक दिन  शाम को जब सूरज चुपके से छुपने लगा, राहुल ने छिपते हुए लाल सूरज की  फोटो लेते हुए दोनों से कहा ,” हमे हफ्ते में एक दिन तो यहाँ हमेशा ऐसे ही आते रहना चाहिए , देखना कितना  सुंदर नजारा है | आधा पौड़ी इस वक्त यहाँ है , सभी अपनी बातो में , एक-दुसरे के किस्से सुनने में , घुमने में , दौड़ने में व्यस्त हैं | मुझे नहीं लगता किसी का ध्यान इस डूबते हुए सूरज के नजारे पर , थोडा सा भी पड़ रहा है |

 नीरज ने राहुल के फोन में फोटो को देखते हुए कहा,” मुझे भी ऐसा ही लग रहा है, सब अपने आप में व्यस्त हैं | और इसमें गलत ही क्या है यार , अब हम ज्यादातर वही चीजे तो करते हैं जो हमें अच्छी लगती हैं , जिनसे हमें ख़ुशी मिलती हैं , जरा वहां पर बैठी उन भाभियों को देख एक-दुसरे से बाते करती हुई कितनी खुश हैं ,और उन्हें ख़ुशी से हंसता हुआ देखकर , वहां से गुजरते लोगों के चेहरे कि मुस्कान को देख ! मैं तो ये कहता हूँ , ये लोग व्यस्त हैं , यही चीज उन्हें ख़ुशी दे रही है | मुझे नहीं लगता कि इन्हें डूबते हुए सूरज के नजारे में खुश होने के बहाने ढूँढने चाहिए | ”

पंकज यह सुन मुस्कुराया और डूबते हुए सूरज से नजरे हटाते हुए कहने लगा ,” तुम्हे क्या लगता है, रोज शाम को इस डूबता हुए सूरज से सामने गप्पे लडाने से ,ऐसे चाय-सुट्टा लगाने से इतनी ख़ुशी क्यों मिलती होगी ?

दोनों इससे पहले कुछ कहते , पंकज ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा,”  देखना जरा ! जिन भाभियों और आंटियों की टोलियों को हम इस समय हंसते हुए देख रहे है , हाथ पर हाथ डाले प्रेमी जोड़ो को एक-दुसरे के आँखों में आँखे डाले मुस्कराते हुए देख रहे हैं | इस ख़ुशी की वजह सिर्फ वो सहेलियां या फिर वो प्रेमी नहीं है ,जिसके साथ रहने से , बात करने से उन्हें अच्छा महसूस हो रहा है | वे खुश हैं क्योकि वे अभी इस एक वक्त, एक पल या फिर एक लम्हे  में जी रहे हैं | इस वक्त में वे सिर्फ एक काम को करके , इस वक्त को जी पा रहे हैं | इससे पहले वे पूरे दिन भर या रात को भी तो उन कामो को कर सकते हैं , जो उन्हें अच्छे लगते हैं , या फिर तुमने जो कहा , जो उन्हें ख़ुशी देते हैं | नीरज ! दरअसल हर वक्त , अपनी मनपसन्द की चीजो को करना हमारे हाथ में नहीं रहता |  उन भाभियों को ही देख सुबह से घर के कामो में व्यस्त रहने के बाद जाके , उन्होंने अपने लिए व्यस्त होने समय निकाल होगा | वो प्रेमी जोड़ा , भले दिन-भर एक-दुसरे से कितनी ही बाते क्यों न कर ले , लेकिन इतना सुकून और ख़ुशी ऐसे बिना बोले बाते करते हुए ही , उन्हें मिल सकता है |    

Sunset in pauri

यह सुनकर दोनों ने स्वीकारात्मक सिर हिलाया और नीरज ने पंकज की बात को आगे बडाने का प्रयास किया ,” हाँ सही कहा | मैं भी यही समझता हूँ , की जीवन जीने का मतलब यह नहीं कि 60-70 साल की उम्र को कैसे काटा जाय | जीवन इस उम्र में आने वाले हर छोटे-बड़े , अच्छे-बुरे वक्त को जीना है | हमारा आज का वक्त , कहीं न कहीं बीते हुए कल के पछतावे और आने वाले कल की चिंता में दबा हुआ रहता है | इसलिए तो चेहरे पर मुस्कराहट कि बजाय ज्यादातर , माथे पर दीवारे पड़ी रहती हैं|

नीरज की बात यही पर पूरी करते हुए तभी राहुल ने कहा ,” हाँ ! तभी लोग खुश होने के बहाने ,डूबते हुए सूरज की लालिमा में ढूढ़ते हैं | है ना!! मैं कई बार सोचता हूँ , आखिर पहाड़ो में डूबते हुए सूरज को देखना हमें कुछ पल के लिए ही सही लेकिन इतना सुकून क्यों देता है ? जबकि किसी को डूबता हुए देखना कहाँ अच्छी बात होती है |

नीरज ने राहुल के सवाल का जवाब देते हुए कहा , “हाँ बात तो सही है !किसी को डूबते हुए देखना अच्छी बात नहीं है , लेकिन ये भी तो देख वो सूरज क्यों डूब रहा है ? वो डूब रहा है ताकि , हमारे लिए एक नई सुबह ला सके |

मौसम और जिस जगह पर तुम रहते हो , उसकी परवाह किये बिना , सूर्यास्त हमेशा सुन्दर होता है | यह एक ऐसा वक्त होता है , जब सबको आसमान में लाल, नारंगी और बैंगनी रंगो का तमाशा देखना अच्छा लगता है | सूर्यास्त एक दिन के बीतने और दुसरे नये दिन की उद्घोषणा है | यह एक प्रतीक है इस बात का कि आप के साथ चाहे कितना भी बुरा क्यों हो जाय , अंत हमेशा खूबसूरत होता है | किसी का दिन बहुत बुरा , कठिन और भारी रहता है , यह उनके लिए राहत के कुछ पल देता है , जहाँ वे अपनी साँसों को महसूस कर पाते हैं , उन्हें एहसास होता है कि वे अभी जिंदा हैं |

सूर्यास्त अपने आप को आराम देने और अपने दिमाग को रीसेट करने के लिए , याद दिलाने का एक शानदार तरीका है। यह शांति और सद्भाव का प्रतीक है | और हमेशा जाते-जाते हमसे एक बेहतर दिन का वादा करता है, बेहतर दिन जिसका अभी आना बाकी है।

मैं तो यह मानता हूँ , डूबते हुए सूरज को कभी पीठ नहीं दिखानी चाहिए , हमें तो हमारे पूरे दिन को प्रकाश से भरने के लिए सूरज का आभार वक्त करना चाहिए |

नीरज की बात , पंकज ने पूरी करते हुए कहा ,” हाँ भाई ! और हम खुशनसीब हैं कि हम पौढ़ी जैसी जगह में रहकर सुबह सूरज उगने का इन्तेजार करके अपने दिन कि शुरुआत करते हैं और शाम को डूबते हुए सूरज को देख पाते हैं | राहुल , तुमने सही कहा हमें यहाँ आते रहना चाहिए |”

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